ठोकरे ही इन्सान को चलना सिखाती हैं इसी को यथार्थ किया निकिता खन्ना ने
मनोरंजन समाचार
- पूनम पांडे ने शिल्पा शेट्टी के पति
- फ़ैशन वीक 2018 जिसमे शोस्टापर थी लखनऊ की
- जाने उत्तर प्रदेश की कौन सी लेडी टाप
- अभिनेत्री प्रीना से जाने नेपाली और
- सिमरन' की कहानी कंगना ने नहीं, मैंने
- जाने बॉलीवुड की कौन सी अभिनेत्री अब
- फ़ेसग्रुप के सिंगिंग स्टार सीजन २ गायन
- जानिये कौन सी फ़िल्म अभिनेत्री अब
खेल समाचार
चुनौतियो को हमसफ़र मानने वाली प्रेसेडियम अकादमिक हेड निकिता खन्ना से बात चीत के कुछ अंश -
अपने जीवन में अनुभव को बटोरते हुए और उम्र भर जिज्ञासु इच्छा समेटते हुए सेल्स टीम लीडर से ले कर सरकारी स्कूल की टीचर तक करिकुलम डेवलपर से लेकर अध्यापिकाओ की ट्रेनर तक हर नयी जगह पे अपनी छाप छोड़ने वाली निकिता खन्ना अपनी 27 साल की उम्र में शिक्षा के क्षेत्र की एक मशहूर और मज़बूत ब्रांड प्रेसेडियम स्कूल की एक ब्रांच में अकादमिक हेड की पोजीशन पे हैं और निकिता कहती हैं
सफ़र अभी बहुत बड़ा चुनौती पूर्ण पर मधुर है
अपने जीवन में हर एक काम को मन से करती रही और मनोरंजक बनती रही पर,एक सोच जो हमेशा ही निर्णायक रही वह है, जीवन में कुछ कर दिखाने का दृढ निश्चय .
मुझे आज भी याद है माँ का कई बार बताया हुआ वो किस्सा, जब मैं: दूसरी बेटी हुई तो उस समय की समाजिक सोच के चलते रिश्तेदारों में वह ख़ुशी नहीं थी, हलाकि मेरे पिता
जी ने मेरा स्वागत पूरे उत्साह से किया परन्तु समाज के विचारों के कारन मेरी माँ की आँखे भर आई थी, तभी वहा की डॉ. ने मुझे माँ की गोद में देते हुए कहा, ‘देखना’ यह
लड़की आपका नाम रोशन करेगी , माँ की उम्मीद भरी आँखों में बचपन से मैंने शिक्षा के क्षेत्र को अपनी समझ और करियर देने का सपना सजा लिया था. क्युकी मेरा मन हमेशा यही
कहता है की, हर उपलब्धि का प्रारंभ एक सबल निर्णय से ही होता है......
जिंदगी की ऊंच नीच में एक ऐसा समय आया जब आर्थिक परिसिथितियो के चलते पिता जी को अलीगढ ट्रान्सफर लेना पडा और माँ भी उनक साथ ही शिफ्ट हुई, मैं डेल्ही यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के दुसरे साल में थी, पढाई छोड़ देना नामुमकिन थी और दो घर चलाना पापा के लिए मुश्किल. अपनी पढाई, घर की देखभाल, छोटे भाई की 10 की
शिक्षा, उसके बोर्ड के पेपर
अगले साल भाई मम्मी पापा के पास चला गया और मैंने बी.एड के एंट्रेंस की तैयारी शुरू की. ग्रेजुएशन खतम होते ही, बी.एड के लिए G.G. S.S.I.P. यूनिवर्सिटी,
डेल्ही में एडमिशन हुआ. जितना सोचा था यह उससे ज्यादा मुश्किल था.
पर माँ को गौरवान्वित करना था, वह जज्बा इतना मज़बूत था की मुश्किलें सामने आई पर एक मुस्कराहट से सुलझ भी गयी. हाँ कुछ राते रोते हुए निकली तो कुछ पढ़ते हुए. (आज भी याद है वो दिन जब माँ का कॉल आया की पापा आई .सी .यू. में हैं .बिना कुछ सोचे समझे शाम की लोकल ट्रेन पकड़ी और रात को 11 बजे अलीगढ पहुंच गई न
जाने कहा से आई थी वो हिम्मत जो उसके बाद कभी नहीं टूटी.) मम्मी पापा की वो सहमी सी लाडली कब इतनी साहसी हो गई पता ही नहीं चला.मेरे अनुसार, जीवन में चुनौतियों को
भी उठाना ही स्नेह पूर्ण अपनाना चाहिए जितना की सफलताओ को क्योकी सूरज की रौशनी का
महत्व तो रात क बाद ही होता है........
बी.एड . खतम होने के बाद जब मम्मी पापा के पास गयी तो एहसास हुआ की आर्थिक स्तिथि आज संतुलित नहीं थी.
पापा की सहायक बनने का समय आ गया था.एक दिन बैग पैक किआ और निकल गयी,डेल्ही स्टेशन से ही बैग कंधो पे लिए एक कंसल्टेंसी में इंटरव्यू देने पहुंच गयी
और शाम को माँ को कॉल किया नौकरी लग गई है. इसी दौरान ऍम.ए. इंग्लिश की पढ़ाई शुरू कर दी थी.जब जीवन में स्थिरता आई तो अपनी छुपी हुई इच्छा को पूरा करते हो निम्न
वर्ग के बच्चों को बिना किसी मूल्य के पढ़ना शुरू किया जो की आज भी जारी है हमारी बड़ी से बड़ी सोच से भी ऊपर होता है वो छोटा सा काम जो किसी को ख़ुशी दे जाए..........
मेरी इस सोच के स्तम्भ हैं: मेरी माँ जिंस कारन आज मैं मुश्किल समय में सहनशील रहती हूं और सही समय में अतिउत्साहित नहीं (डाउन तो अर्थ) मेरा आत्मविश्वास ही
मेरी पहचान है जो उनसे आया.मेरी सास माँ जो न ही सिर्फ मेरी माँ हैं बल्कि एक सहेली और सलाहकार भी . मानिये चेयरपर्सन प्रेसिडियम और मदर्स प्राइड श्रीमती सुधा
गुप्ता जी जिनसे रूबरू हो जाने से ही नव चेतना उत्पन्न हो जाती है,उनका जीवन ही अपने आप में प्रेरणा दायक है .
मुझे लगता है की जीवन में सफलता की सीढ़ी चढ़ने के पहले और मूल कदम हैं संयम रखना कुछ नया सीखते रहना और सुदृढ़ संकल्पित होना. मेरा मानना है की अपने सभी
प्रियजनो को हर पल खुश रख पाना नामुमकिन है परन्तु खुद को उनक लिए इतना उपलब्ध रखना की वह अपना दुःख आपक साथ बाँट सके यही सही मायनों में सफलता है .
मैंने जीवन के इस छोटे से सफ़र से समझा है की हर दिन हर व्यक्ति से,और हर एक परिस्थिति में,
ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता,एक तोहफा है ,
सीखने की योगता, एक कौशल है,
परन्तु सबसे महत्वपूर्ण है सीखने की इच्छा,जो हमारा चुनाव है......
मैं चाहती हू ,मेरी यह इच्छा, योग्यता और क्षमता हमेशा पनपती रहे और
मेरी समझ को आलंकृत करती रहे.....
खुशिया बांटती और बटोरती सी चलू मैं ,
रिपोर्ट -सबिता साम्बयाल