बड़ी से बड़ी नाव को एक छोटा सा छेद डुबो देता है
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गन्दा पीने का पानी, बिजली की व्यवस्था, स्वास्थ्य व्यवस्था, यातायात, शिक्षा आदि मूल भुत व्यस्थाओ से आम जनता का सीधा सम्बन्ध है अब इन समस्याओ पर कार्यवाही का स्तर समझते है / आम जनता या कोई समाज सेवी या पत्रकार इन समस्याओ पर किसी सम्बंधित अधिकारियो को फोन करे जो सरकार द्वारा अधिकारियो को प्रदान किये है तो सामान्य जवाब प्रार्थना पत्र दे दे दिखवता लेता हूँ आ जाता है / सवाल यह है की आम जनता की सार्वजानिक समस्याओ में भी क्या जनता को साहब जी साहब जी कर के समस्या के निदान के लिए भीख मांगनी पड़ेगी ? लोकतांत्रिक व्यवस्था में आम जनता अपनी सुविधा के लिए ही सरकार चुनती है और सरकार अपनी कार्यपालिका के माध्यम से जनता को मूलभूत सुविधाए प्रदान करने हेतु प्रयासरत होती है आज मुझे श्री राम चरित मानस की यह चौपाई याद आ रही है /
‘’विनय न मानत जलधि जल गये तीन दिन बीत’’,
‘’बोले राम सकोप तब भय बिन होय न प्रीत’’ /
कई बार सरकार की मंशा आम जनता को मूल भूत सुविधाए व सुरछित स्वस्थ वातावरण प्रदान करने की होती है परन्तु निगरानी और जवाबदेही के आभाव में खानापूर्ति व्यवस्था अपनी जड़े जमा लेती हैं / आज कल कुछ इस तरह की खबरे आम है / ऍम. डी. ऍम, में गड़बड़ी दो सस्पेंट, आर0टी0ओ0 में चार दलाल पकडे गए डॉ0 की लापरवाही से मरीज की जान गयी आदि
सवाल यह है की यदि कोई नवनियुक्त अधिकारी आता है और जनमानस हेतु स्वस्थ्य कार्यवाही करता है परन्तु जो जो जिम्मेदार पहले वहां पर थे क्या उनके पाप इस कार्यवाही से कट जाते हैं / मेरा सवाल है आखिर यह खेल चल कैसे रहे हैं रोड बनी गायब, सीवर लाइन बिछी चली नहीं, पोलिथीन बन्द चालू हैं प्राईबेट स्कुलो पर नकेल की बात बी0एस0ए0 का कहना मेरी कोई भूमिका नहीं, मुख्य मार्ग प्रकाश व्यवस्था की बात नगर आयुक्त साहब का कहना प्रार्थना पत्र दे दो, किसे के घर के सामने पोल तार नहीं कोई कार्यवाही नहीं, स्वछताअभियान का फरमान, लेकिन पूरा पूरा पार्क कूड़ाघर, कलेक्ट्रेट का शौचालय गन्दगी का घर जब –जब नकेल कसी गयी खानापूर्ति फिर उसी पुरानी आदत में अधिकारियो का आ जाना यह सब समस्याएं किसी एक क्षेत्र की नहीं अपितु पुरे प्रदेश की हो सकती है / अब समय पूरी जवाब देही और निगरानी का है क्योकि किसी छोटी से छोटी समस्या का असर किसी एक ब्यक्ति पर पर बहुत बड़ा हो सकता है / किसी घटना की पुनरावृत्ति लापरवाही है /
छोटी – छोटी समस्याओ का अम्बार है जो लिखना सम्भव नहीं परन्तु ब्यवस्था को सुचार रूप से चलने के लिए जहां एक तरफ किसी भी समस्या से सम्बंधित लोगो की जवाब देही, निगरानी और दंडात्मक व्यवस्था आवश्यक है / वही दूसरी तरफ जनता का भी कर्त्तव्य है की वह सरकारी सम्पति को अपना समझ कर उनकी भी उतनी रक्षा करे जितनी अपने घर की करता है /
संतोष कुमार पांडेय