कोई मुझको लौटा दे मेरा वह बचपन....
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खेल समाचार
शीर्षक -यादें बचपन की
लौट के फिर से बचपन में ,खो जाने को जी करता है।
मिट्टी में उंगली से खेलों का संसार उकेरे जाने को जी करता है।
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तालाब किनारे चिकनी माटी के,नन्हें-नन्हें कोमल हाथों से
गुड्डे और गुड़ियों का बाज़ार बनाने को जी करता है।
लौट के फिर से..................
टप - टप बारिश में छप - छप करके बहते पानी में
चुपके -चुपके कागज़ की नाव बहाने को जी करता है।
लौट के फिर से...................
हरे-हरे बांस की कोठियों में बैठे बगुलों के संग
नील गगन में हाथ उठाकर उड़ते जाने को जी करता है ।
लौट के फिर से.......................
भरी दुपहरी में चुपके से बगिया जाकर जामुन, इमली ,आम तले
दोस्तों संग मस्ती में मुहँ खोल के सो जाने को जी करता है।
लौट के फिर से....…............……
गेहूं , धान बेचकर दुकान में बनिए की वो चटपटी
चूरन ,इमली , गोली,और कम्पट खाने को जी करता है।
खट्टी - मीठी भोली - भाली यादों में खो जाने को जी करता है।
यारों लौट के फिर से बचपन में खो जाने को जी करता है।
रचना- शालिनी सिंह (लखनऊ)