बाल दिवस पर एक पाती ” बच्चों के साथ बड़ों के नाम "

31 Mar 2017 20:22:16 PM

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" बाल दिवस पर एक पाती ” बच्चों के साथ बड़ों के नाम "
हम बाल दिवस पर बच्चे- बच्चे चिल्लाते हैं 
ये बच्चे, जो हमारा गुलशन महकाते है 
उन्हें आज हम कितना
उपेक्षित कर जाते हैं
जो बातें हम नहीं कर पाते 
बच्चों से उनकी उम्मीद कर जाते हैं।

दुनिया के उन्नीस प्रतिशत बच्चे भारत में 
कहाँ -कहाँ, किस तरह , शोषण , कुपोषण 
भुखमरी , उपेक्षा , अशिक्षा , अत्याचार के शिकार
बेबस , लाचार , अवसाद , ग़रीब, बीमार 
और हम बेईमान, पैसा होते हुए भी 
सब अपने ऊपर उड़ाते हैं 
नारे, स्लोगन, वार्ताएं खूब रचाते हैं ।

नन्हें हृदयों को जबरन अपनी
महत्वाकांक्षाओं का शिकार बनाते हैं 
आज के पालक ज़बरदस्त दोगलापन दिखाते हैं 
ख़ुद बिगड़े हैं बच्चों को सुधारना चाहते हैं 
अपनी कमियों का सारा दोष
इन मासूमों पर मढ़ जाते हैं।

तकनीक ने वय से पहले ही
बना दिया है उन्हें वयस्क 
क्यों नहीं उन्हें हर बात
प्यार से समझाते हैं 
ज़रा सोचें कितना वक़्त 
हम उन्हें दे पाते हैं।

खेल बदल गए , क़िस्से -कहानी भी 
कागज़ की नाव, बारिश का पानी भी 
न वो हरियाली , न गांव
न प्रकृति में खोज बीन , न पीपल की ठाँव 
चुप गया , सहम सा गया , ठिठक गया 
भोला बचपन कहीं भटक सा गया।

गायब वो अपनापन , खिलौने 
बडों का संरक्षण , संस्कार 
अब बस वर्चुअल दुनिया और 
ई -गेम्स, गैजेट्स से ही इन्हें प्यार
 पर सबके लिए भी समाज  
और परिवार ही है ज़िम्मेदार 
यही बच्चे हैं हमारी धरोहर
भविष्य के कर्णधार।

सभ्य जनों अपने मुखोटे उतारो 
बाल दिवस उत्सव , बधाइयों से पहले
हक़ीक़त की ज़मीं पर आओ 
अपने गिरेबान में झांको
पहले ख़ुद को सुधारो ।

खुद जियो उन्हें भी जीने दो 
सोच समझ विवेक के साथ
उन्हें अपनी उड़ाने लेने दो 
तारों से अपनी दुकां सज़ाने दो 
चाँद पर सपनों का जहाँ बसाने दो।
..........@ अनुपमा श्रीवास्तव "अनुश्री "

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