“ रंग ”

13 Mar 2017 14:04:40 PM

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“ रंग ”
बाहर रंगों के मेले हों  ना हों, 
  दिलों में रंग  खिले-खिले हों  
 नीला रंग ओढ़ लेती हूं, 
 लगता आसमां साथ चल रहा है
 सफेद पैरहन  पंछियों की
 टोलियों में उड़ा देता है
धानी धरा के हरीतिमा समों, 
 उसी की तरह औघड़ दानी बना देता है
गुलाबी,  मासूम परियों की,
 लज़ीली मुस्कुराहट से सज़ा देता है
तो गेरुआ मन पर दस्तक दे रूह छू जाता है
 लाल रंग  जीवंत  कर जाता है ,
सुर्ख़ फूलों सा,  ज़िंदगी से भर जाता है
 सारे रंग  समेट काला रंग, 
स्याह कर देना चाहता है 
फिर भी ये रंग,
 छलक -छलक , बिखर -बिखर 
अपनी महिमा जता -जता
जादुई चित्रकारी से कायनात को 
भर -भर जाते हैं
इसलिए  'रंग ' कहीं भी बिखरे हों 
पलकें उनके उजालों से रंगीं हों !!
……………………………. @ अनुपमा श्रीवास्तव 'अनुश्री '

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