चुनावी प्रक्रिया और ईबीएम मशीन पर विशेष
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साथियों,
लोकतंत्र में मतदान चुनावी प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग होता है और मतदान के माध्यम से यह ज्ञात होता है कि बहुमत किसके साथ है।मतदान यानी वोट देने की प्रक्रिया बहुत पुरानी है और आजादी के बाद इसने एक स्थायी परम्परा का रूप धारण कर लिया है।आजादी के बाद बहुत दिनों तक प्रधान आदि के लिये मतदान नहीं होता था बल्कि हाथ उठाकर अपना मत व्यक्त कर दिया जाता है।मतदान प्रक्रिया अब तक बैलेट पेपर और मतपेटियों के माध्यम से होती थी। लोग मनचाहे प्रत्याशी वाले खाने में मुहर लगाकर अपना वोट और प्रत्याशी की भाग्य मतपेटी में डाल देते थे।बैलेट पेपर में मुहर लगाने और उसे मोड़कर मतपेटी में डालने में समय लग जाता था और इस प्रक्रिया में तमाम गरीबों के वोट भी फर्जी डाल लिये जाते थे।मतपेटियां बदल दी जाती थी और बैलेट पेपर फाड़ दिये जाते थे।इन मतपत्रों की गिनती करने में कई दिन लग जाते थे और गिनती में अक्सर चूक हो जाती थी जिसे मानवीय भूल कहकर टाल दिया जाता था।समय के साथ साथ चुनावी प्रक्रिया में भी सुधार हुआ और फोटोयुक्त मतदाता सूची बन गयी हैं और सारा कार्य कम्प्यूटरीकृत करके आन लाइन कर दिया गया है।मतदान प्रक्रिया में भी बदलाव लाकर मतपेटी की जगह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल किया जाने लगा है।इस मशीन से मतदाताओं को आसानी व समय की बचत होने लगी है साथ ही गिनती करने में कोई विशेष समय नहीं लगता है।इन वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल इस चुनाव में पहली दफा नहीं किया गया है बल्कि इसका इस्तेमाल दशकों पहले से हो रहा है। ईबीएम मशीन से यह पहली बार भाजपा को प्रचंड बहुमत नहीं मिला है बल्कि इससे पहले सपा बसपा को भी मिल चुका है। लेकिन आजतक किसी ने मशीन की नीयत पर संदेह नहीं किया।यह पहला अवसर है जबकि ईबीएम मशीन पर संदेह व्यक्त किया जा रहा है और चुनाव आयोग तथा उनके वर्तमान व सेवानिवृत्ति अधिकारी सफाई देते घूम रहे हैं कि इसमें ऐसा संभव ही नहीं है कि इसे एक व्यक्ति पर फिक्स कर दिया जाय।ईबीएम मशीन को अगर एक व्यक्ति पर फिक्स कर दिया जायेगा तो फिर दूसरे व्यक्ति अथवा प्रत्याशी को मत नहीं मिलेंगे।अगर मशीन में सिर्फ एक ही दल के प्रत्याशी के मत मिले हो तब तो संदेह किया जा सकता है लेकिन अगर सभी प्रत्याशियों को मत मिले हो तो बेचारी ईबीएम मशीन को बदनाम करना उचित नहीं है।यह बहुत ही गंदी मानसिकता का परिचय है।जो बहुत ही गलत है।चुनाव होने के बाद नेताओं की व्यस्तता समाप्त हो गयी है और वह अपने खाली समय का सदपयोग कर इस मुद्दे को अदालत तक पहुँचाने और राजनैतिक मुद्दा बनाने में जुट गये हैं।
SANTOSH KUMAR SINGH