इक सूखे सावन की जैसे बासी शाम हुए

01 Jun 2017 15:40:18 PM

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इक सूखे सावन की जैसे बासी शाम हुए
हम तुलसी बिन रखे उदासे शालिग्राम हुए

चिठ्ठी से आगे बढ़ दुनिया 
मैसेज को मचली
और हमारी प्रीत अभी तक
कागज़ की मछली
प्रेम शब्द के अब कितने बौने आयाम हुए
हम तुलसी बिन रखे उदासे शालिग्राम हुए

कभी न्यूज चैनल पर जब
कुछ ख़ास नहीं आता
तब भी तुम्हारे होने का 
अहसास नहीं आता
खुद में सिमटे-सिमटे दोनों दुआ-सलाम हुए
हम तुलसी बिन रखे उदासे शालिग्राम हुए

यादों का क्या है एक गठरी
खुली अधखुली सी
कुछ भी नया नहीं सूखे 
फूलों की अंजुरी सी
इस गठरी में पल-पल बीते आठो याम हुए
हम तुलसी बिन रखे पुराने शालिग्राम हुए
Rachit Dixit 
Pilibhit ( uttar pradesh)

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