'ठहरा-सा चाँद'

25 Apr 2017 13:38:10 PM

मनोरंजन समाचार

खेल समाचार

ज़िन्दगी से तात्पर्य चलते रहने से है, वहीं ठहर जाने का मतलब है-- मौत । कई सम्मान से सम्मानित और कई पुरस्कार से पुरस्कृत तथा कई संस्थाओं से जुड़ी एवं अनेक पुस्तकों की रचयिता (रचयित्री !) व बहुमुखी प्रतिभा की बिंदास कवयित्री अनुपमा श्रीवास्तव 'अनुश्री' की प्रस्तुत कविता 'ठहरा-सा चाँद',



'ठहरा-सा चाँद'


चमचम-चकमक चमकता, ठहरा -सा चाँद 
देख रहा एकटक,  टुकुर -टुकुर 
शिखर छूती, बुलंद इमारत के पीछे से 
शहर की खलबल , तन -मन की हलचल ! 

हर पल नयी इबारत लिख रहा शहर 
चाँद भी अविरल बांच रहा ये आखर 
बदलते दिन -रात ,शाम-ओ- सहर,आठ पहर 
मशीन होती धड़कनों पर भी है नज़र !

रोटी,कपड़ा व मकान में जुटा
आदमी प्रकृति की मधुर पनाह से छूटा 
डिजिटल लाइफ ने चाँद को भी  आ घेरा
अब गीतों में भी दुनियावी बातें 
कहाँ रहा चाँद औ' चांदनी रातों का डेरा 
कवि की कल्पनाओं का सफ़र भी 
ठहर गया सम्मान और पैसों पर आकर !

चाँद से रोशन रातें, 
चारु चंद्र की चंचल बातें  
उस उजास का  बनें  हमसफ़र 
कल-कल सी ज़िंदगी में
नहीं  है दो पल , मगर 
साक्षी  है चाँद, पशेमाँ 
वक़्त तो बढ़ता गया, पर -
ख़ुद में सिमट गया इन्सां !
उधर ठहरा-सा चाँद !!

मुख्य समाचार