'ठहरा-सा चाँद'
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ज़िन्दगी से तात्पर्य चलते रहने से है, वहीं ठहर जाने का मतलब है-- मौत । कई सम्मान से सम्मानित और कई पुरस्कार से पुरस्कृत तथा कई संस्थाओं से जुड़ी एवं अनेक पुस्तकों की रचयिता (रचयित्री !) व बहुमुखी प्रतिभा की बिंदास कवयित्री अनुपमा श्रीवास्तव 'अनुश्री' की प्रस्तुत कविता 'ठहरा-सा चाँद',
'ठहरा-सा चाँद'
चमचम-चकमक चमकता, ठहरा -सा चाँद
देख रहा एकटक, टुकुर -टुकुर
शिखर छूती, बुलंद इमारत के पीछे से
शहर की खलबल , तन -मन की हलचल !
हर पल नयी इबारत लिख रहा शहर
चाँद भी अविरल बांच रहा ये आखर
बदलते दिन -रात ,शाम-ओ- सहर,आठ पहर
मशीन होती धड़कनों पर भी है नज़र !
रोटी,कपड़ा व मकान में जुटा
आदमी प्रकृति की मधुर पनाह से छूटा
डिजिटल लाइफ ने चाँद को भी आ घेरा
अब गीतों में भी दुनियावी बातें
कहाँ रहा चाँद औ' चांदनी रातों का डेरा
कवि की कल्पनाओं का सफ़र भी
ठहर गया सम्मान और पैसों पर आकर !
चाँद से रोशन रातें,
चारु चंद्र की चंचल बातें
उस उजास का बनें हमसफ़र
कल-कल सी ज़िंदगी में
नहीं है दो पल , मगर
साक्षी है चाँद, पशेमाँ
वक़्त तो बढ़ता गया, पर -
ख़ुद में सिमट गया इन्सां !
उधर ठहरा-सा चाँद !!