सत्यम  शिवम् सुंदरम ' हो  सृजन " 

18 May 2017 15:40:15 PM

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कलम  के साधक  ,सरस्वती   के वरद   पुत्रों पर गहन दायित्व  है।  साहित्य में जो बिखराव  , भटकाव, सस्ता पन  आज ध्वनित हो रहा है ,उसके पीछे  भी बहुत  सारे कारण  हैं।   प्राचीन साहित्य के आज भी हम पुजारी  हैं क्योंकि उसमें  भाषा   और   भाव दोनों की उत्कृष्टता  के साथ  जीवन मूल्यों का सुंदर समावेश  होता  था  जो एक ज्योतिर्मय  मशाल   की  तरह सदियों  से आज  तक कालजयी है , मानवता को रोशन कर रहा है, पथ प्रदर्शित कर रहा है उस जीवन के लिए  जो  सच्चे   अर्थों   में जीवन कहलाये। आज भी हमारे समक्ष  उद्धरण  के रूप  में  हर  कहीं  शामिल   हैं क्यों कि वो सर्वकालिक,  प्रासंगिक है।   व्यक्तित्व से कृति  का निर्माण -अगर  कहा जाये तो कुछ अनुचित नहीं होगा क्योंकि, शब्दशिल्पी   की अपनी  सोच , भाव   और  परिस्तिथियों से कहीं न कहीं   लेखन प्रेरित  होता  है। आपकी विचारधारा और सोच  कितनी  तर्कसंगत है , सत्य का कितना  प्रकटीकरण  करती   है!  कितनी सार्थक और उद्देश्यपूर्ण  है ! किस तरह मानस में उतर  कर आशा , स्फूर्ति और ओज का संचार करती हैं ! कितनी रचनात्मक  और सकारात्मक है !   लेखन   गर नवाचार लिए, नव  चिंतन  से प्रेरित ,स्वस्फूर्त   न हो , आशाओं ,  सकारात्मकता  का संवाहक न  हो , उद्देश्यहीन होकर  सामाजिक सरोकार से विलग  'लकीर  का  फ़कीर ' या नकारात्मकता का संवाहक  हो ,सिर्फ़ आत्ममुग्धता से ग्रसित होकर छद्म  सम्मानों की  दौड़ में शामिल हो , भ्रम और नकारात्मकता  को पोषित करता हो , जीवन  मूल्यों से , आध्यात्मिकता से अनुप्रेरित   न होकर  सिर्फ़ दुःखाकर्षण से ग्रषित होकर झूठी   वाहवाही  लूटने के लिए लिखा जाता  है , जबरन ऐसे मुद्दे  उठाता  हो  तो  , ऐसी कलम को उठाकर   दफ़न  कर  देना होगा।  समस्याएं  हैं गर तो  समाधान भी  है। आज का साहित्यिक परिदृश्य उत्कृष्टता से , आध्यात्मिक चिंतन  से दूर ,सस्तेपन का शिकार , चलताऊ भाषा   का शिकार   है तो  समाधान भी  है।  आज का साहित्यिक परिदृश्य उत्कृष्टता से , आध्यात्मिक चिंतन  से दूर ,सस्तेपन का शिकार , चलताऊ भाषा   का शिकार   हुआ  जा रहा है। बल्कि    'सत्यम , शिवम् , सुंदरम ' का जयघोष करे

अनुपमा श्रीवास्तव "अनुश्री "

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