वास्तुकला का अद्भुत नमूना है लखनऊ की भूल भुलैया

17 Mar 2017 19:02:16 PM

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लखनऊ की भूल भुलैया अपने निर्माण के करीब सवा दो सौ साल बाद भी वास्तुकला का अद्भुत नमूना बनी हुई है। अवध के नवाबों के शासन के मूक गवाह इस विशाल भवन को बड़ा इमामबाड़ा के नाम से जाना जाता है। यहां की ऐतिहासिक इमारतों में अपना विशेष स्थान रखने वाली भूल भुलैया का वास्तव में जैसा नाम वैसा काम भी है। पहली बार यदि कोई इस इमारत में अकेले प्रवेश करना चाहे तो वह भटक जाता है।

भूल भुलैया का निर्माण सन 1784 के आसपास हुआ था। इस नायाब इमारत का नक्शा किफायत उल्लाह देहलवी ने तैयार किया था। इसके निर्माण में उस समय करीब दो करोड़ रुपए का खर्च आया था। जब इसका निर्माण हो रहा था उस समय भुखमरी और सूखे का वर्चस्व कायम था। इसका निर्माण नवाब आसफुद्दौला ने इस गरज से करवाया था कि भुखमरी, बेकारी, बदहाली से त्रस्त लोग इसके निर्माण में मसरुक हो जाएं और अपनी रोजी-रोटी का बंदोबस्त कर लें। भूल भुलैया की दीवारें, छतें और एक-एक ईंट इस बात की गवाह है कि अवध के नवाब गीत गजल नृत्य के ही नहीं बल्कि वास्तुकला के भी मुरीद थे। भूल भुलैया की लम्बाई 183 फुटए चौड़ाई 53 फुट और ऊंचाई 50 फुट के करीब बताई जाती है। 

इमारत की मोटी-लम्बी दीवारों की एक-एक ईंट ऐसे जड़ी गई है जैसी किसी अंगूठी में नगीना। निर्मित हालों की छतें किसी सहारे की मोहताज नहीं हैं तथा इसकी बेलदार जालीदार नक्काशी को आंखें देखते नहीं अघाती हैं। भूल भुलैया में एक झरोखा इस होशियारी से बनाया गया है जिससे मुख्यद्वार से आने वाले दर्शक को इस बात का एहसास नहीं होगा कि उसे कोई देख रहा है। इस भवन की एक खूबी यह भी है कि दिन के दूसरे पहर की धूप जब सिर पर होती है तो ऐसा लगता है कि पानी की लहरें एक के ऊपर एक गश्त कर रही हैं। वास्तुकला की अनूठी कृति भूल भुलैया के गलियारे के एक छोर पर हल्की सी आवाज दूसरे छोर पर साफ सुनाई देती है। इसी भूल भुलैया की इमारत की छत से पूरे आप लखनऊ शहर का जायजा ले सकते हैं। 

सुरंगों के हालों की खूबी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यदि कोई गुपचुप बात करना चाहे तो वह नामुमकिन है। एक सौ तिरासी फुट लम्बी, तिरपन फुट चौड़ीए पचास फुट ऊंची इस नायाब इमारत में तकरीबन एक हजार गलियारे बताए जाते हैं। दो सौ साल पूर्व निर्मित इस भूल भुलैया की लोकप्रियता आज भी उतनी ही है। आजकल यहां हुसैनाबाद ट्रस्ट की ओर से कई गाइड नियुक्त किए गए हैं। हुसैनाबाद ट्रस्ट के अधीन इमामबाडाए भूल भुलैया आदि ऐतिहासिक भवनों, पुरातन इमारतों को देखने आने वाले पयर्टकों से लाखों रुपए ट्रस्ट को प्राप्त होते हैं। हुसैनाबाद ट्रस्ट में लगभग दो सौ कर्मचारी कायर्रत हैं जिसमें गाइड़, माली, क्लर्क, सफाईकर्मी आदि शामिल हैं। इस भूलभुलैया को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। यूं तो यहां पर नियुक्त गाइडों को तनख्वाह ट्रस्ट की ओर से निश्चित है परन्तु ये लोग पयर्टकों को मूर्ख बनाकर उनसे भी पैसा उगाहते रहते हैं।

                                                                                                                      vikash mishra
 

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