मधुरिमा तिवारी ’समाज सेवा एवं कला के नभ का दमकता तारा                                                                    

08 Mar 2017 16:38:04 PM

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                                                                               लड़कियां लड़कियों की तरह होती हैं
                                                                                   उनकी दिशाऐं तय होती है।
                                                                           पर कई बार वे लड़कियां बांध तोड़ सैलाब होती हैं    
                                                                               यही लड़कियां इंक़लाब होती है।
हमारे हिंदुस्तान के आंगन में हर रोज तमाम बच्चे धरती पर पहली आंख खोलते हैं। उन हज़ारों में कई की आंखों में धुंधले से कई ख़्वाब होते हैं कुछ को ऐसे लोग मिल जाते हैं। जो उनकी आंखो की चमक में भविष्य की सुनहरी सफलता देख लेते हैं और उनकी उंगली थाम के धरती से गगन की ऊंचाई तक पहुंचा देते हैं वहीं कुछ बच्चे जन्मजात प्रतिभा के कारण खुद अपने कुम्हार बनते हैं। बच्चों में अगर लड़की हुई तो उसकी चुनौती दोहरी हो जाती है। क्योंकि भारत के संविधान में 1950 से ही बराबर का दजऱ्ा पा जाने के बावजूद समाज और सोाच से बराबरी पाने में अभी न जाने कितने और बरस लगेंगें, इन मुश्किल हालातों में भी हमारी तमाम बेटियां और बहनें हर कदम पर विपरीत हालातों को अपने मज़बूत इरादों से अनुकूल बनाती हुई अमिट पदचिन्ह बनाती चलाती हैं ताकि आने वाली पीढ़ी न सिर्फ़ उनसे रास्ता हासिल कर सके,बल्कि उन पर गर्व भी महसूस कर सके, ऐसी ही एक जीतने की ज़िद्दी भारत की बेटी है ’मधुरिमा तिवारी’ बचपन से ही रूचि कला और रंगमंच के प्रति थी वो भाग्यशाली थीं कि उनके पिता श्री जे0पी0तिवारी,सचिव,उ0प्र0प्रेस क्लब,लखनऊ का उन्हें हर कदम पर न केवल साथ मिला बल्कि भरपूर सराहना भी मिली। पिता के आशीर्वाद और अपनी प्रतिभा के बूते वो स्कूल से सांस्कृतिक कार्यक्रम करते-करते रंगमंच की सीढ़ियां चढ़ते हुए कब सितारों की दुनिया मुंबई पहुंच गयीं,इसका अहसास उन्हें तब हुआ जब बड़ी-बडी होडिंग्स में एक ’’स्टार’’ की तरह उन्होंने अपनी तस्वीर देखी। एक बार सफलता मिलने के बाद मधुरिमा ने पीछे पलटकर नहीं देखा। मधुरिमा के गंभीर अभिनय को बड़े स्तर पर सराहा गया। 
            कलाप्रेमी मधुरिमा के खूबसूरत व्यक्तित्व में बेहद जज़्बाती पहलू उन्हें और भी ख़ास और ऩाज करने लायक बनाता है और वह है उनकी समाज के प्रति समर्पित सोच, जिसे उन्होंने ’संचेतना’ का नाम दिया है और इसी के तहत वे मुंबई में 2005 में आई बाढ़ में अपने तमाम साथियों को जागरूक कर सहायता कार्य में लगी रहीं,और अभी भी उत्तर प्रदेश,विशेषकर अमेठी क्षेत्र के गांवों के हालात और ख़ासकर स्त्री को सम्मान के साथ जीविका देने,उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए वो गांव से लेकर सरकारी महकमों के बीच सेतु सी बन गयाी हैं। उनके अथक कदम,आवाज़ में खनकते विश्वास और नेक मंशा को देखकर लगता है। कि शायद फाइलों से निकलकर खुशियां इस सेतु से गांव पहुंच ही जायेंगी। बस उनकी एक तमन्ना है कि कोशिश बहुतों की तकदीर और तस्वीर बदल सके फिलहाल तो लम्बे डग भरती अपनी इस बहन को देख सुशील सिद्धार्थ भईया की लिखी कुछ पंक्तियां याद आ रही है
                                                                      ’’इरादों में फलक,निगाहों में मंजिल-ए-मक़सूद 
                                                                       बिजलियों को भी सहेली बना लेगी लड़कियां’’
                                                                                                ’डाॅ0 मंजु शुक्ला’ संचार विशेषज्ञ

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