हिन्दू मंदिर में जाने का समय
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हिन्दू मंदिर में जाने के नियम मंदिर समय : हिन्दू मंदिर में जाने का समय होता है। सूर्य और तारों से रहित दिन-रात की संधि को तत्वदर्शी मुनियों ने संध्याकाल माना है। संध्या वंदन को संध्योपासना भी कहते हैं। संधिकाल में ही संध्या वंदना की जाती है। वैसे संधि 5 वक्त (समय) की होती है, लेकिन प्रात:काल और संध्याकाल- उक्त 2 समय की संधि प्रमुख है अर्थात सूर्य उदय और अस्त के समय। इस समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है। दोपहर 12 से अपराह्न 4 बजे तक मंदिर में जाना, पूजा, आरती और प्रार्थना आदि करना निषेध माना गया है अर्थात प्रात:काल से 11 बजे के पूर्व मंदिर होकर आ जाएं या फिर अपराह्नकाल में 4 बजे के बाद मंदिर जाएं।धरती के दो छोर हैं- एक उत्तरी ध्रुव और दूसरा दक्षिणी ध्रुव। उत्तर में मुख करके पूजा या प्रार्थना की जाती है इसलिए प्राचीन मंदिर सभी मंदिरों के द्वार उत्तर में होते थे। हमारे प्राचीन मंदिर वास्तुशास्त्रियों ने ढूंढ-ढूंढकर धरती पर ऊर्जा के सकारात्मक केंद्र ढूंढे और वहां मंदिर बनाए। मंदिर में शिखर होते हैं। शिखर की भीतरी सतह से टकराकर ऊर्जा तरंगें व ध्वनि तरंगें व्यक्ति के ऊपर पड़ती हैं। ये परावर्तित किरण तरंगें मानव शरीर आवृत्ति बनाए रखने में सहायक होती हैं। व्यक्ति का शरीर इस तरह से धीरे-धीरे मंदिर के भीतरी वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर लेता है। इस तरह मनुष्य असीम सुख का अनुभव करता है। पुराने मंदिर सभी धरती के धनात्मक (पॉजीटिव) ऊर्जा के केंद्र हैं। ये मंदिर आकाशीय ऊर्जा के केंद्र में स्थित हैं। उदाहरणार्थ उज्जैन का महाकाल मंदिर कर्क पर स्थित है। ऐसे धनात्मक ऊर्जा के केंद्र पर जब व्यक्ति मंदिर में नंगे पैर जाता है तो इससे उसका शरीर अर्थ हो जाता है और उसमें एक ऊर्जा प्रवाह दौड़ने लगता है। वह व्यक्ति जब मूर्ति के जब हाथ जोड़ता है तो शरीर का ऊर्जा चक्र चलने लगता है। जब वह व्यक्ति सिर झुकाता है तो मूर्ति से परावर्तित होने वाली पृथ्वी और आकाशीय तरंगें मस्तक पर पड़ती हैं और मस्तिष्क पर मौजूद आज्ञा चक्र पर असर डालती हैं। इससे शांति मिलती है तथा सकारात्मक विचार आते हैं जिससे दुख-दर्द कम होते हैं और भविष्य उज्ज्वल होता है। dr indu subhash