नारी तुम्हे हर बार पढ़ा ,लिखा और गुना जायेगा

08 Mar 2017 14:25:31 PM

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‘नारी’

नारी तुम्हे हर बार पढ़ा ,लिखा और गुना जायेगा

क्योंकि तुम एक महाकाव्य हो

अनेक प्रष्ठ,भाग,अध्याय समेटे हुए

अनगिनित ,अनछुए पहलुओं ,भावों को लपेटे हुए
 

श्री हो ,शक्ति भी ,नर के ह्रदय पर

नेह की कोमल ,प्रथम नाजुक वृष्टि भी

नर के इर्द-गिर्द रचित सुंदर स्रष्टि

स्वप्राण से परप्राण को पोषित करती
 

आदि काव्य का प्रथम प्रष्ठ हो

अनेक रूपों में अभिव्यक्त हो

पन्नों पर बनाती हो प्रतिमाएं

गढ़ती हो मूर्त-अमूर्त संज्ञाएँ
 

उपमानों ,प्रतीकों, भावों, संकेतों से

कहती हो कितनी कहानियां

पावस की प्रथम सिहरन ,विरह की तपन

नन्हे हाथों की छुअन, वो बेशर्त समर्पण


 

खुद को बांटकर सबको करती हो पूरा

फिर भी कुछ रह जाता है अधूरा

करती हो जो पूर्णत्व प्रदान

क्या पाती हो सच्चा प्रतिदान !



 

कविताओं ,लेख, पोस्टर, व्याख्यान

तुम्हे महान बताने के ये सारे अभियान

पर सचमुच तुम्हें कितना समझा है ये जहां !

जो दे सके तुम्हें अपेक्षित मान !

 

जब करती हो कोई सवाल

प्रतिप्रश्नों का इर्द-गिर्द बुन दिया जाता है जाल

प्रश्न अनुतरित ,भावनाएं व्यथित

फिर भी रहती हो, कर्तव्यपथ पर अग्रसित


 

जन्म देने के बाद से नर को

हर बार उठाती हो,कभी स्वयं गिर कर,

महान हो ,मानवता को पोषित हो करती

भावनाओं के निर्झर में ,झर -झर हो बहती


 

नारी की गहराइयों को छू सके

पुरुष का कहाँ ऐसा उत्कर्ष!

एक कोना जो रह जाता है कहीं खाली

पुरुष नहीं भर पायेगा कभी!

 

इतना कुछ करके भी क्या पाती हो!

कहीं ये तो नहीं! .

ब्रम्हा का वजूद सिद्ध करने

खुद को दांव पर लगाती हो !!



 

............          अनुपमा श्रीवास्तव ,अनुश्री '

                 साहित्यकार,   भोपाल

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