बेडियाँ ...........

14 Apr 2017 10:41:52 AM

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बारहवी की कक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद योगिता नजदीकी शहर के कालेज में दाखला लेने के सपने सजाने लगी। उसके साथ की सहेलियाँ तो नये नये सूट भी सिलवा रही थी स्कूल की वर्दी से पीछा जो छूटने वाला था उनका। लेकिन योगिता के घर में कोई भी जिक्र नहीं था इस विषय पर कहाँ कौन से कालेज में आगे की पढाई पूरी हो सकेगी योगिता दिन रात उधेड बुन में रहती माँ से जिक्र कर ही दिया आखिर माँ तो शुरू से ही चाहती थी योगिता  खूब पढे लिखे लेकिन कविता के पिता जी पुराने रूढीवादी विचारों के केवल अपने दोनो बेटों पर ही ध्यान देते थे। आगे पढाई ससुराल वाले कराऐगें तुम्हारे घर के काम काज सीखो आँखों मे आसूओं और हृदय में तूफान लिऐ वो अपने कमरे में आ फफक पडी उसकी माँ भी देख कर.वापस लौट गयी उससे पहले के योगिता की नजर उस पर पडे उसकी माँ भी आसू पोछते हुऐ रसोई घर में लौट गयी
उसकी सहेलियाँ तरह तरह के परिधानों में उससे मिलने आती कालेज की बातें बताती अचानक जब उसके पिता जी घर में होने का अहसास होता तो वे सब चुप हो जाती थी धीरे धीरे घर के सारे काम काज सीख गयी घर में उसकी शादी की बातें चलने लगी उसके पिता जी के मित्र द्वारा बताऐ गये रिश्ते की चर्चा घर में हो रही थी बात चलते तीन महीने बीत गये इधर यौगिता के हाथ एक दिन फोटो आ ही गयी एक खूबसूरत सजीला सुंदर युवक मानों फोटो में से कब बोल पडे एक पल उसकी आँखे बंद हुई बाकी लडके की पढाई सरकारी नौकरी और बडे घर बार की चर्चा तो उसने सुन ही ली थी पिता जी की पुस्तक.में से उसने फोटो उठाई थी वहीं रवैसे ही रख दी रोज जब भी कमरे की सफाई करने आती तो देख लेती एक बार नयी जिन्दगी अनगिनत ख्वाब उसने जागती आँखो से देख डाले अचानक एक दिन अपने माता पिता को रिश्ते की चर्चा करते सुना 
माँ.कह रही थी..जब आज ऐसे लालच दिखा रहे है कल शादी के बाद क्या डिमाण्ड कर.दें 
पिता-और दोनों लडको का भी तो हमें कोई बिजनेस.खुलवाना होगा ऐसे कैसे लडकी पर लुटा दें हम 
माँ-हाँ जी सही बात है आप ठीक कह रहे हो आप 
वो जो लडका बताया था बहन जी अब तक तो सैट हो गया होगा कहीं ना कहीं और फिर इसका भाग्य इसे सब दिला देगा होगा अगर भाग.में
आज फिर योगिता के सपने टूटे और कमरे की और बढ गयी ये तो वो आँसू थे जिनको वो दिखा भी नहीं सकती अगर कोई देख.लेता तो माँ क्या कहेगी बेशर्म कहेगी।   कुछ दिनो बाद उसका रिश्ता तय किया और शादी का दिन आ गया आखिरी बार वो छिपकर देखने गयी अपने के कमरे में जो उसका पहला प्यार था अनजाने मे उसके निश्छल मन को जिसने पंसद कर लिया था योगिता भरे मन से विदा हुई उस घर की चौखट से जो जिसमें उसका बचपन बीता बडी हुई बेटी लड के मत आईयों कभी भी वापिस जब आऐ राजी खुशी आईयों बस उसकी दादी ने समझाया उसे
बदकिस्मती से उसके पती भी ऐसे ही पुराने ख्यालातों के निकले कई बार पढाई करने का जिक्र किया तो उसकी बात को टला देते उसके पती आगे उसने कुछ सोचना और चाहना ही बन्द कर दिया 
एक दिन तेज बरसात हुई और उस बारिश को खिडकी में से निसारती रो पडी क्योकी आज भी वही बारिश वही घुटन भरा माहौल और वही दबी उमंग तेज  बारिश में नहाने की भीगने की हँसने की गाने की। बदली है तो सिर्फ बेडियाँ।

साधना शर्मा गीत....

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