राजनैतिक सौदागरों पर विशेष लेख
मनोरंजन समाचार
- पूनम पांडे ने शिल्पा शेट्टी के पति
- फ़ैशन वीक 2018 जिसमे शोस्टापर थी लखनऊ की
- जाने उत्तर प्रदेश की कौन सी लेडी टाप
- अभिनेत्री प्रीना से जाने नेपाली और
- सिमरन' की कहानी कंगना ने नहीं, मैंने
- जाने बॉलीवुड की कौन सी अभिनेत्री अब
- फ़ेसग्रुप के सिंगिंग स्टार सीजन २ गायन
- जानिये कौन सी फ़िल्म अभिनेत्री अब
खेल समाचार
दोस्तो,,
राजनीति धीरे धीरे राजनैतिक सौदागरों की शिकार होकर बदनाम होती जा रही है।कुछ लोग समाज में ऐसे होते हैं जो अपनी स्वार्थपूर्ति के लिये हमेशा सत्ता के करीब बने रहना चाहते हैं।ऐसे लोगों के कोई वसूल सिद्धांत नहीं होते हैं और उनका वसूल सिद्धांत सब कुछ उनके स्वार्थ से जुड़े होते हैं।यह राजनैतिक सौदागर समय समय पर अपनी टोपी झंडा और आस्था बदलने में माहिर होते हैं और यह समय को भांपकर अपना चोला बदल लेते हैं।यह राजनैतिक सौदागरों के आगे जान देने वाले समर्पित कार्यकर्ता व नेता भीड़ में गायब हो जाते हैं और यह सौदागर बरसाती घास की तरह राजनेता को कैप्चर करके अपने इशारे पर चलने के लिये मजबूर कर देते हैं।अबतक इन सौदागरों की भीड़ सपा नेताओं के इर्द गिर्द घूम रही थी और अपना उल्लू सीधा कर रही थी लेकिन सत्ता परिवर्तन होते ही वह भीड़ सपा का दामन छोड़कर भाजपा की तरफ आ गयी है।जो कल तक सपा नेताओं को बेच रहे थे आज वह सभी भाजपा नेताओं की गणेश परिक्रमा करके अपनी पहचान व जुगाड़ बनाने में जुट गये हैं।इनमें कुछ सौदागर दूरदृष्टि वाले होते हैं और वह मतदान के पहले ही जनभावनाओ को भांप जाते हैं और चुनाव या मतगणना से पहले ही पाला बदल लेते हैं जबकि कुछ सौदागर चुनाव परिणाम आने के बाद साँप की तरह अपनी केंचुल बदल लेते हैं।भाजपा को इस चुनाव में मिले प्रचंड बहुमत के बाद इन सौदागरों का प्रेम भाजपाईयों के प्रति बढ़ने लगा है।राजनीति में यहीं सौदागर ऐसे होते हैं जो असली कार्यकर्ता को पार्टी या नेता से दूर कर देते हैं।फलस्वरूप कार्यकर्ता नेता से निराश होकर दूर हो जाता है जिसका खामियाजा नेता को आगामी चुनाव में हार के रूप में भुगतना पड़ता है।राजनीति के इन सौदागरों के दुष्कर्मो का फल नेता को मिलता है और बेगुनाह मारा जाता है।जब तक नेता सत्ता के करीब रहता है तब तक यह सौदागर उसके नाम को बेचा करते हैं और विश्वासपात्र बने रहते हैं ।यह हमारे देश की राजनीति का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि हमारे नेताओं को ईमानदार कर्मठ व सत्य कहने वालों की अपेक्षा हाँ में हाँ मिलाने वाले अधिक पसंद होने लगे हैं।चुनाव प्रत्याशी नहीं हमेशा उसका कार्यकर्ता लड़ता है और वहीं आपसी दुश्मनी मोल लेता है और उसी की जान भी चली जाती है।कार्यकर्ता राजनैतिक पार्टी की जान होता है और उसके बिना चुनाव लड़ना या पार्टी बना पाना संभव ही नहीं है।इन्हीं राजनैतिक सौदागरों की वजह से सरकार या नेता बदनाम हो जाता है लेकिन यह सौदागर इसकी जरा भी परवाह नहीं करते हैं।राजनीति इन सौदागरों की वजह से भ्रष्ट ही नहीं होती जा रही है बल्कि जनभावनाओ से दूर होती जा रही है।राजनेताओं को सदैव अपने ईमानदार मेहनतकश समर्पित स्वच्छ छबि वाले समर्पित कार्यकर्ताओं को ही सत्ता में आने पर महत्व देना राजनैतिक भविष्य के लिये उचित होता है।
VIKASH MISHRA