पिता का योगदान फ़ादर्स डे पर खास

18 Jun 2017 17:01:13 PM

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        एक बच्चे के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास में एक पिता का योगदान माँ से किसी भी तरह कम नहीं होता.माँ तो वात्सल्य की मूर्ति होती है जहाँ अपने बच्चे के लिए प्रेम ही प्रेम होता है  मगर पिता उसकी भूमिका यदि माँ से बढ़कर नहीं तो माँ से कम भी नहीं होती. ज़िन्दगी की कठिन से कठिन परिस्थिति में भी पिता अपना धैर्य नहीं खोता और उसकी यही शक्ति बच्चों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है. बच्चों के जीवन के छोटे -बड़े उतार -चढ़ावों में पिता चट्टान की तरह खड़ा हो जाता है और अपने बच्चों पर आँच भी नहीं आने देता. बेशक ऊपर से कितना भी कठोर क्यूँ ना दिखे पिता का व्यक्तित्व मगर ह्रदय में उसके जो प्यार होता है अपने बच्चों के लिए वो शायद दूसरा समझ ही नहीं सकता. बेशक ज्यादा लाड – प्यार ना जताए मगर वो भी अपने बच्चों की छोटी से छोटी ख़ुशी के लिए उसी प्रकार जी -जान लड़ा देता है जैसे माँ.बस वो अपने स्नेह का उस प्रकार प्रदर्शन नहीं कर पाता. समर्पण ,प्रेम और त्याग में पिता कहीं भी पीछे नहीं होता बस वो जता नहीं पता. माँ तो रो भी पड़ेगी मुश्किल हालात में मगर पिता वो हमेशा अन्दर ही अन्दर सिर्फ अपने आप से जूझता रहेगा मगर कहेगा नहीं वरना ममता और भावुकता में वो किसी से पीछे नहीं रहता.ना पिता में जज्बात कम होते हैं ना ही अहसास बस अपने प्यार को वो अपनी कमजोरी नहीं बनने देता और यही उसकी ताकत होती है ज़िन्दगी से लड़ने की और आगे बढ़ने की.
                 ज़िन्दगी का व्यावहारिक ज्ञान जिस प्रकार पिता बच्चों को दे सकता है शायद उतनी अच्छी तरह और कोई नहीं दे सकता . बच्चे के अन्दर से भय का दानव वो ही निकालता है . माँ तो फिर भी अपनी ममता के कारण बच्चे को कहीं अकेले जाने के लिए  मना भी कर दे मगर पिता वो बड़ी बेफिक्री से बच्चे को प्रोत्साहित करता है जिससे बच्चे में आत्मविश्वास बढ़ता है. एक पिता अपने बच्चों को सुरक्षा की भावना प्रदान करता है. जैसे यदि माँ होती तो चाहे बेटा हो या बेटी उन्हें कोई भी वाहन चलाने पर चिंतित हो जाएगी . हाय !मेरा बच्चा ठीक- ठाक घर आ जाये या उसे चलाने  से ही मना कर दे क्यूंकि हर माँ जीजाबाई जैसे ह्रदय की नहीं होती मगर माँ की जगह पिता इस कार्य को चुटकियों में और खेल -खेल में पूरा कर देता है और माँ भी उस वक्त बेकिफ्र हो जाती है जब बच्चा पिता के साये में ज़िन्दगी जीना सीख रहा होता है.
                जब बच्चा मुश्किल घडी में अपने पिता को धैर्य और आत्मविश्वास के साथ हालत का मुकाबला करते देखता है तो ये भावना भी उसके दिल में घर कर जाती है और बच्चा भी अपने पिता के पदचिन्हों पर चलने के लिए प्रेरित हो जाता है . किसी भी असफलता की घडी में उसे अपने पिता की सहनशक्ति ही आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करती है और फिर बच्चा हर कठिन से कठिन परिस्थिति का हँसते -हँसते मुकाबला करने में सक्षम हो जाता है.।बहुत सारे ऐसे भी बच्चे हैं जिनके ऊपर पिता का साया नही हैं,अगर इनसे पूछा जाए तो शायद उनको ये बता पाना बढ़ा कठिन होगा कि वो बिना पिता के कैसे अपना जीवन व्यतीत करते हैं।पिता उस सुरक्षा कवच को कहते हैं जहाँ बच्चा खुद को सबसे ताकतवर और सुरक्षित महसूस करता है।मगर कुछ ऐसे भी हैं जिनके लिए माँ बाप बोझ के समान हो जाते हैं,मैं ये नही समझ पाती हूँ कि कैसे कोई ज़िन्दगी से उस हिस्से को हटा सकता हैं जिसने उसको अपने खून पसीने से तैयार किया हो पिता के बिना जीवन अधूरा हैं।
         
 एक बच्चे के समुचित विकास में लिए माँ के साए के साथ- साथ पिता का योगदान भी उतना ही आवश्यक है तभी बच्चे का सर्वांगीण  विकास संभव है.।

वो दौलत कहा हैं जिसमे सुकून मिल जाये
लाख कमा कर देख लिया आराम की जहाँ मोहलत मिल जाये
एक ऐसी दौलत दे दी खुदा ने
जिसमे पूरी ज़िंदगी महलो जैसे गुजर जाए।
मेरे माँ बाप का साया हैं ऐसा जिसमे मेरी सारी उम्र हँसते हँसते गुजर जाए।🙏💐शैल मिश्र

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