पुरूष यदि देवीचाहता है ,तो स्वयं देव बनना होगा....
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स्त्री और पुरूष में कैसा फर्क ..??
अक्सर देखते है होता रहा है जो प्रेम हिस्से मे आ जाऐ स्त्री का तो वो देवी.दूसरे के साथ प्रेम में पडी हो स्त्री कुलटा.हो जाती है....क्यों?
ये तो केवल स्वार्थ सिद्ध करना हुआ ...यदि ये बात पुरूष स्वयं पर भी लागू करे ....तो यहाँ हर महिला...देवी होगी...
पुरूष को देव बनना होगा यदि वह देवी चाहता है।
अपने ही सुविधा अनुसार.मान्यताऐं बना.देने का अधिकार ....किसने दिया पुरूष समाज को?
स्त्री के चरित्रहीन होने का आकलन पुरूष करे तो पुरूष के चरित्र का मापदण्ड और आकलन क्यों नहीं ....प्राकृतिक संरचना और बुद्धी विवेक और ज्ञान ...संयम सदाचार त्याग में स्त्री पुरूष से सदैव आगे रही है रहेगी
उसकी स्वतंत्रता और इच्छा उतनी ही मान्य है सही है.जितनी की एक पुरूष की।
मर्यादित स्त्री...।पुत्र वधू , बेटी ,पोती,बहन यदि समाज का पुरूष वर्ग अथवा सभी चाहते है....(जो कहीं ना कहीं किसी महिला को मूर्ख बना चुके होते है प्रेम के ढाई अक्षरों से) तो स्वयं को भी ठीक चरित्रवान बनाना.होगा...।
चरित्र ....मर्यादा केवल स्त्री की जिम्मेदारी नहीं अपितु ये सभी की भागीदारी हो।
साधना शर्मा गीत....