क्या-क्या बाकी है

22 Jun 2017 20:14:23 PM

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क्या-क्या बाकी है
 

 

गुज़र गया वक़्त,था बहुत जज़्बा
कुछ कर गुज़रने के जज़्बात अभी बाक़ी हैं

गिरते-उठते,उठते-गिरते,सीख है बहुत
भूल न जाऊँ, दिल के ज़ख्म अभी बाक़ी हैं।

चलती है ज़हन में जब उदासियों की आँधी
दस्तक देती दिल की आवाज़,बहुत ऊफान अभी बाक़ी हैं।

ज़िन्दगी का समंदर बह रहा अपनी रफ़्तार
पर लहरों में हौसलों का तूफ़ान अभी बाक़ी है ।

रे मन!हाथ थाम तू क्यों भटक रहा उलझन में
अकेले तू ही दिलबर मेरा,भेदने लक्ष्य अभी बाक़ी हैं।

दिल से दिल में तुझे ही वरण किया हूं दिलबर
तूफां की कश्ती में चढ़,करने दिलों पे राज अभी बाक़ी हैं।


रचना- शालिनी सिंह(लखनऊ)

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