महिलाओं का शोषित वर्ग, सम्मानित वर्ग कि तुलना में कई गुना ज्यादा
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स्त्री भगवान की एक ऐसी रचना है, जिसके बिना दुनिया की कल्पना करना कभी ना पूरा
होने वाले सपने की भांति है! यह उस पवित्र शक्ति का श्रोत है, जो कि अपना
सर्वस्व दांव पर लगाकर अपने परिवार की खुशियों की रक्षा करती है, तथा उसका पालन
पोषण में ही जीवन व्यतीत कर देती है! वह हर कष्ट सहनशीलता एवं शालिनता के साथ
स्वयं उठाकर सबको सामान तथा अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के पौधे को रोपती है!
हालाँकि उसकी ममता का क़र्ज़ चुका पाना तो असंभव है, किन्तु हमारा फ़र्ज़ बनता है
कि उसकी ममता के बदले उससे उच्च सम्मान दिया दें, उसकी रक्षा करें! उसके
उपलब्धियां सराहनीय, पूज्यनीय हैं! स्त्री का शशक्तिकरण सिर्फ उसका ही नहीं,
अपितु पूरे परिवार का, समाज का, देश का, पूरे विश्व का शशक्तिकरण हैं, जिसका वह
आधार हैं! इन्ही बातों को ध्यान में रखकर हम ८ मार्च को, पूरे विश्व में महिला
दिवस के रूप में मनाते हैं!
किन्तु आज समाज में महिलाओं का शोषित वर्ग, सम्मानित वर्ग कि
तुलना में कई गुना ज्यादा हैं! यह आज उत्पन्न हुयी कोई नयी समस्या नहीं, बल्कि
इसका सम्बन्ध ऐतिहासिक काल से हैं! इतिहास पलट कर देखें तो प्रारम्भ से ही,
महिलाओं को व्यक्ति नहीं, वास्तु का दर्ज दिया जाता रहा है! सदैव उसके सम्मान
और समानता का अभाव रहा है! इतिहास हमारी संस्कृति को प्रतिबिंबित करती हैं, और
हमेशा से पुरुषों को शक्तिशाली दर्शाया गया है, तथा उनका है गुणगान किया गया!
इसे एक शब्द में कहें तो- पित्रसत्तात्माक व्यवस्था! जिसमे समस्त अधिकार पुरुष
वर्ग के पास, तथा सभी जिम्मेदारियां, समस्याएं, महिला वर्ग अर्थात शोषित वर्ग
के पास! महिलाओं कि स्वतंत्रता पर तमाम तरह के संस्कारों का हवाला देकर रोक
लगाने के साथ उनका जीवित क्षेत्र भी सीमित किया गया है
कष्टदायी बात यह हैं कि, आज २१ वी सदी में भी महिलाओं की स्तिथि
एवं अधिकारों में अपेक्षाकृत सुधार नहीं दिख रहा है! हमे रोज है तमाम ऐसी
घटनाएं सुनने में आती हैं जिनमे पुरुष वर्ग महिलाओं का शोषण करके खुद को
शक्तिशाली समझने की भूल में रहता है! २०११ की जनगणना के अंतिम आंकड़ों पर नज़र
डालें तो भारत का लिंगानुपात- ९४० हैं, जो कि महिलाओं कि दयनीय स्थिति कि छवि
को स्वयं प्रदर्शित कर रहा है! भारत के कुछ दक्षिणी एवं पूर्वी राज्य
लिंगानुपात, साक्षरता के मामले में, कछ हद्द तक अछि स्तिथि में हैं, किन्तु
बाकी कि हालत किसी से छुपी नहीं है! वर्ल्ड इकनोमिक फोरम द्वारा जारी कि गयी
वैश्विक लिंग समानता रिपोर्ट ने भारत में महिला-पुरुष असमानता कि जानकारी देते
हुए पुनः जहकझोर दिया है! पिछले वर्ष की तुलना में इस बार भारत १३ पायदान नीचे
खिसककर ११४ वें स्थान पर विराजमान है! हालाँकि रिपोर्ट में कुल १४२ देशों को
है शामिल किया जाता हैं, परन्तु सबसे ख़राब लिंगानुपात वाले देशों की सूची में
भारत ने भी स्थान बनाया है! इससे यह कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा, की देश में
लिंग-भेद, श्रम शक्ति, साक्षरता के क्षेत्र में अभी महिलाओं को बहुत आगे लाने
की आवश्यकता है! महिलाओं के प्रर्ति आस्मां व्यवहार में हो रही निरंतर वृद्धि
का प्रमाण- जेंडर गैप इंडेक्स में भारत के प्रदर्शन से प्राप्त होता है!
भारतीय संविधान में भले ही महिलाओं और पुरुषों को सम्मान अधिकार
तथा सम्मान दृष्टि, सम्मान अवसर प्राप्त करने के ज़ोर दिया हो, परन्तु मौजूदा
स्तिथि को देखकर यह स्पष्ट हैं कि महिलाओं को सम्मान नागरिक कि श्रेणी से बाहर
किया जा रहा है, अभी भी उन्हें शिक्षा, स्वस्थ्य, रक्षा में आगे बढ़ने के पथ
में भरी भेद भाव का सामना करना पड़ रहा है! यह एक बड़ा जटिल प्रश्न हैं कि सरकार
द्वारा अनेक अभियान चलने पर भी महिलाओं कि स्तिथि में सुधार कि उम्मीद तू दिख
रही हैं, लेकिन प्रत्यक्ष प्रमाण कुछ और है बयां करते हैं! लैंगिक समानता में
वे लगातार पीछे हो रही हैं! रोज़ हमे घरेलु हिंसा, यौन शोषण, शारीरिक उत्पीड़न,
दुराचार के मामलों में प्रगति देखने को मिल रही है! साथ है कन्या भ्रूण हत्या
के मामले भी पीछे नहीं हैं, जबकि, जन्म से पहले भ्रूण के लिंग कि जानकारी लेना
अथवा देना कानूनन अपराध हैं, लेकिन फिर भी हो रहा हैं! भारत के लिंगानुपात कि
डगमगाती स्थिति के लिए यह एक मुख्या कारण है, और इन सबके लिए कहीं ना कहीं हम
आम जान जिम्मेदार हैं!
महिलाओं के साथ बढ़ते अत्याचार, उनके शोषण के पीछे जिम्मेदार कई
कारणों में से- साक्षरता एक बहुत महत्वपूर्ण कारण है! आमतौर पर हस्ताक्षर कर
लेने वाले को शिक्षित वर्ग में गिन लिया जाता हैं, जभी यूनेस्को के अनुसार
शिक्षित होने कि परिभासः हैं कि वह पढ़ने-लिखने के साथ साथ जेवण में समृद्ध और
सक्षम हो! इसे है कई विकसित देश भी अपना रहे हैं! यदि हमे महिलाओं की स्तिथि
में वास्तविक सुधर चाहिए, तो उन्हें शिक्षा के दम पर शशक्त बनाना होगा, तभी
ऐतिहासिक काल से लोगों के मन में चली आ रही महिलाओं के प्रति नीची और
रूढ़ीवादी सोच में बदलाव आएगा! हमारी राज्य एवं केंद्र सरकारों के साथ साथ कई
अन्य संगठन भी इस क्षेत्र में सुधर के लिए प्रयासरत हैं, और नयी नयी योजनाएं
लागू की जा रही हैं, और इनके परिणाम सकारातमक भी प्राप्त हो रहे हैं! जनगणना
२०११ की रिपोर्ट के अनुसार २००१ से २०११ के मध्य महिला साक्षरता दर में ११% की
वृद्धि हुई है- तथा मौजूदा दर- ६५.४६% है,जबकि २००१ के अनुसार- ५३.६७% थी!
साक्षरता के क्षेत्र में एक बड़ी समस्या उच्च शिक्षा के स्तर पर लड़कियों के
ड्राप आउट दर में भी काफी गिरावट आई है! २०११-२०१२ में: ६.०८%, -- २०१३-२०१४
में: ४.०१% ! विद्यालयों में भी नामांकन का प्रतिशित लगातार ऊंचाई पर पहुँच
रहा है! महिला शष्क्ितकरण की दृष्टि से ये सभी अच्छी, और सकारात्मक उपलब्धियां
हैं! वर्ष २००३ में लड़कों की प्राथमिक शिक्षा हेतु राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया
गया था, जिससे करोड़ों लड़कयाँ लाभान्वित हुईं, तथा शिक्षा के क्षेत्र में काफी
अच्छे मुकाम को हासिल किया! कई अन्य सरकारी योजनाओं के तहत क्लस्टर स्कूलों का
निर्माण हुआ जिसमे, उन्हें शिक्षा के साथ-साथ आत्मरक्षा के लिए भी प्रशिक्षित
किया जा रहा है!
सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत कई अन्य प्रावधान भी किये गए -
१) प्रत्येक १ किलोमीटर पर प्राथमिक स्कूल,
२) प्रत्येक ३ किलोमीटर पर उच्च प्राथमिक स्कूल,
३) लड़कियों हेतु अलग शौचालय की व्यवस्था,
४) किसी कारणवश बीच में पढ़ाई छोड़ चुकी लड़कियों को पुनः शिक्षा के क्षेत्र से
जोड़ना, आदि !
भारत में महिलाओं ने अनेक क्षेत्रों में बड़ी उपलब्धियां प्राप्त
की हैं,और निरंतर आगे की ओर अग्रसर हैं, किन्तु वहीँ दूसरी ओर महिलाओं के साथ
बढ़ते जुर्म- कन्या भ्रूण हत्या, यौन शोषण, शारीरिक उत्पीड़न, दुराचार आदि, के
बढ़ते मामले मन में एक संशय पैदा करते हैं! भले है इन सभी में कमी आ रही हैं,
किन्तु जुर्म की बढ़ती गति का अनुमान लगाकर. महिलाओं को समानता और सम्मान के
अधिकार की तरफ चल रहे सफर में तेज़ गति से चलना होगा! यदि महिलाओं का सशक्तिकरण
सही ढंग से हुआ तो निश्चित है बहुत जल्द एक बड़ा बदलाव सबके समक्ष होगा! पिछले
कुछ सालों में महिलाओं की स्तिथि में कुछ हद्द तक सुधार देखने को मिला हैं,
वहीँ जुर्म में भी वृद्धि हुई,- किन्तु जहाँ महिलाओं को अवसर प्राप्त हुआ
उन्होंने खुद को सफल साबित किया! यहाँ तक कि कुछ अधिकतर काम शिक्षित महिलाओं
ने भी अनेक क्षेत्रों में पुरुषों से बेहतर प्रदर्शन कर उनके समक्ष चुनौती पेश
की है! महिलाएं अपने अधिकार के प्रति जागरूक होकर, घरों से बाहर निकालकर सफलता
का परचम लहरा रही हैं! परन्तु इतना संतोषजनक नहीं है- क्युकी "संतोष विकास को
रोक देता है"! मंज़िल अभी दूर है, रास्ता लम्बा है, और शीघ्र तय करना है!!
शैल मिश्रा